तंबाकू व शराब के ज्यादा सेवन से भी ‘डायबिटिक फुट अल्सर’ हो सकता है

Diabetic Foot Ulcer Treatment Pune | Foot & Ankle Specialist Dr. Chetan Oswal

 डॉ. चेतन ओसवाल
ऑर्थोपेडिक फुट एवं एंकल सर्जन
क्लीनिक: ऑर्थोविन फुट एवं एंकल क्लीनिक,
ईस्ट स्ट्रीट कैंप.
संपर्क क्रमांक: 9769300085

डॉ. चेतन ओसवाल ने दी चेतावनी – ‘देश में 7.70 करोड़ डायबिटिक पेशेंट, इनमें से 25% को डायबिटिक फुट अल्सर’

डाइबिटिक फुट अल्सर से ग्रस्त लोगों में से लगभग 20% लोगों में, यह बीमारी इतनी गंभीर होती है कि उनका पूरा पैर काटने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रहता. इससे बचने के लिए मधुमेह को नियंत्रण में रखना और अपने पैरों की ओर लगातार ध्यान देना आवश्यक है. प्रसिद्ध ऑर्थोपेडिक फुट एवं एंकल सर्जन डॉ. चेतन ओसवाल (Dr. Chetan Oswal) ने ’आनंद’ के प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए अपने विचार व्यक्त किए.

सामान्यतः लोगों में पैरों से संबंधित कौन सी समस्याएँ पाई जाती हैं?

डॉ. ओसवाल: लोगों में सामान्यतः एड़ियों में दर्द (Heel Pain), आर्थराइटिस (Arthritis), घुटनों में मोच आना अथवा उसका आड़ा-तिरछा होना, फ्लैट फुट (Flat Foot) (पैरों के तलवे सपाट होना), डाइबिटिक फुट अल्सर एवं विभिन्न प्रकार के संक्रमण, खेलते समय होने वाली विभिन्न तरह की स्पोर्ट्स इंजरी, पहले हुई किसी दुर्घटना के कारण पैरों को हुई क्षति अथवा टेढ़ापन जैसी विभिन्न समस्याएँ पाई जाती हैं.

भारत में फिलहाल डाइबिटिक फुट अल्सर से संबंधित समस्याओं से ग्रस्त लोगों की अनुमानित संख्या कितनी है?

डॉ. ओसवाल: फिलहाल भारत में 7.70 करोड़ लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं. इनमें से लगभग 20 से 25% लोग डाइबिटिक फुट अल्सर से ग्रस्त हैं. 20% लोगों में यह बीमारी इतनी गंभीर होती है कि उनका पूरा पैर अथवा घुटने से नीचे तक का पैर काटने के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रहता. दुर्घटना के अतिरिक्त अन्य कारणों से पैर काटने की सर्जरी वाले हर 10 में से 8 केसों के लिए डाइबिटीज ही जिम्मेदार होती है.

पुणे में डाइबिटिक फुट अल्सर का उपचार कराने वाले मरीजों की संख्या कितनी है?

डॉ. ओसवाल: फिलहाल पुणे में डाइबिटीज के कुल मरीजों में से लगभग 20% लोग डाइबिटिक फुट अल्सर से ग्रस्त हैं. इनमें से 50% मरीजों में संक्रमण फैल चुका होता है और उन्हें छोटी-बड़ी सर्जरी करानी पड़ती है. दुर्भाग्य से संक्रमण से ग्रस्त मरीजों में से, लगभग 20% लोगों के पैर काटने की नौबत आ जाती है. फुट अल्सर से ग्रस्त पुरुषों एवं महिलाओं का अनुपात 2:1 है.

डाइबिटीज फुट अल्सर सामान्यतः किस उम्र में होता है?

डॉ. ओसवाल: भारत में लगभग 45 से 65 वर्ष आयु समूह के रोगी डाइबिटिक फुट अल्सर की समस्या से ग्रस्त पाए जाते हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से यह उम्र घट गई है और 33 से 45 की उम्र के लोग भी इससे ग्रस्त होने लगे हैं. कम आयु में डाइबिटिक फुट अल्सर होने के कारणों में मुख्यतः गलत जीवन शैली, खानपान की गलत आदतों के साथ ही तंबाकू का अनियंत्रित सेवन एवं शराब का सेवन जिम्मेदार है.

डाइबिटिक फुट अल्सर की समस्या क्यों होती है? इससे बचने के लिए क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

डॉ. ओसवाल: गलत नाप के अथवा बहुत कसे हुए जूते पहनने से पैरों में फुट अल्सर हो सकता है. शुरुआत में यह पैर में हुए गोखरू (कॉर्न) अथवा किसी जख्म पर जमी पपड़ी के समान दिखाई देता है. जल्दबाजी में पैरों के नाखून काटने पर, नाखून आड़े-तिरछे काटे जाने पर भी वहाँ डाइबिटिक फुट अल्सर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. मधुमेह के रोगियों के पैरों में, रक्तसंचार ठीक से न होने के कारण भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है. मद्यपान एवं धूम्रपान भी डाइबिटिक फुट अल्सर के लिए जिम्मेदार होते हैं. पैरों में पहले हुई कोई गाँठ अथवा कॉर्न भी डाइबिटिक फुट अल्सर में बदल सकता है.

क्या घर बैठे डाइबिटिक फुट अल्सर का पता लगाया जा सकता है?

डॉ. ओसवाल: मधुमेह से ग्रस्त मरीजों को अपने पैरों का बहुत ध्यान रखना चाहिए. डाइबिटिक फुट अल्सर (Diabetic Foot Ulcer) के लक्षण घर बैठे पता किए जा सकते हैं. पैरों में सूजन या बहुत दर्द होना, लालपन दिखाई देना, पैरों में गर्मी महसूस होना, पैर में हुए कॉर्न में से मवाद अथवा पानी आना अल्सर के आसपास काला घेरा बनना अथवा टिशू जमा होना आदि लक्षण डाइबिटिक फुट अल्सर विकसित होने की चेतावनी के संकेत हो सकते हैं. अतः मधुमेह के मरीजों के लिए, प्रतिदिन अपने पैरों पर ध्यान देना और उसकी जाँच करते रहना जरूरी है.

डाइबिटिक फुट अल्सर का इलाज किस तरह किया जाता है?

डॉ. ओसवाल: डाइबिटिक फुट अल्सर विकसित होने पर, उसके इलाज का मुख्य ध्येय यह होता है कि यह संक्रमण शरीर में अन्यत्र फैलने न पाए. इसके लिए पहले पैरों की नसों में होने बाले रक्तसंचार का परीक्षण किया जाता है. कभी-कभी पैरों के अंगूठे की हड्डी में टेढ़ापन आने के फलस्वरुप भी अल्सर हो जाता है. ऐसे में पैरों की अल्ट्रासोनोग्राफी कर रक्तसंचार की जाँच की जाती है और पैरों का एक्सरे कर, हड्डियों की स्थिति का परीक्षण किया जाता है. इंफेक्शन बहुत ज्यादा फैल गया हो तो गैंग्रीन न होने देने के लिए सर्जरी द्वारा अल्सर काट कर निकाल दिया जाता है. पैरों में हुए अल्सर के ठीक होने तक, उसकी नियमित स्वच्छता करनी पड़ती है. इस तरह के मरीजों के लिए खास तरह के जूते बनवाए जाते हैं. अल्सर पर दबाव न पड़ने तथा उसकी दशा और बिगड़ने से बचाने के लिए इन जूतों का लगातार प्रयोग आवश्यक होता है.

डाइबिटिक फुट अल्सर: क्या सावधानियाँ बरतें?

डाइबिटिक फुट अल्सर से ग्रस्त मरीजों को प्राथमिक सावधानी के तौर पर नियमित अपने रक्तशर्करा के स्तर की जाँच करवानी चाहिए तथा डाइबिटीज नियंत्रण में रखना चाहिए.

इसके अतिरिक्त डॉ. ओसवाल ने निम्नलिखित सावधानियाँ एवं रोकथाम के उपाय बताए हैं – 

1. अच्छी गुणवत्ता एवं सही नाप के फुटवियर पहनें.

2. जूतों के साथ सूखे और स्वच्छ मोजे पहनें.

3. कभी भी नंगे पैरों से न घूमे. लगातार खास तरह के जूतों का उपयोग करें.

4. प्रतिदिन अपने पैरों की जाँच करें कि कहीं उन में सूजन, लालपन अथवा फोड़े तो नहीं है.

5. रक्तशर्करा के स्तर की नियमित जाँच करें एवं उसे नियंत्रित रखें.